छठ पूजा में सूर्य भगवान की ही पूजा क्यों की जाती है? छठ की शुरुआत कब और कैसे हुई

Chhath Puja: छठ पूजा एक महापर्व के रूप में मनाया जाने वाला त्यौहार है, यह त्यौहार चार दिनों तक चलता है। यह नहाने से शुरू होता है और उगते हुए और डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य देकर समाप्त होता है। ये उत्सव साल में दो बार मनाया जाता है। यह पहली बार चैत्र महीने में और दूसरी बार कार्तिक महीने में मनाया जाता है। कार्तिक पक्ष षष्ठी पर मनाया जाने वाले छठ पर्व को “कार्तिकी छठ” और चैत्र पक्ष षष्ठी पर मनाया जाने वाले छठ पर्व को “चैती छठ” कहा जाता है। ये पर्व पारिवारिक सुख-समृद्धि और मनोवांछित फल प्राप्ति के लिए मनाया जाता है। इसका विशेष ऐतिहासिक महत्व है।

👉 महाभारत काल से हुई थी छठ पर्व की शुरुआत

हिंदू धर्म के लोगों का मानना है कि छठ पर्व महाभारत काल से शुरू हुए थी । सूर्यपुत्र कर्ण ने सूर्य की पूजा करके इस पर्व को शुरू किया था। माना जाता है कि कर्ण भगवान सूर्य के परम भक्त थे और वे हर दिन घंटो पानी में खड़े होकर उन्हें अर्घ्य देते थे। वह भगवान सूर्य देव की कृपा से एक महान योद्धा बने। छठ में आज भी अर्घ्य देने की परंपरा प्रचलित है।

बिहार के बक्सर में माता अदिती और ऋषि कश्यप का आश्रम था। भगवान सूर्य का जन्म माता अदिती ने कार्तिक महीने की षष्ठी तिथि को किया था। भगवान सूर्य को आदित्य भी कहा जाता है, क्योंकि वह माता अदिती का पुत्र था। इसलिए कार्तिक मास पूरे वर्ष पवित्र महीना माना जाता है। कार्तिक महीने में लोग भी गंगा किनारे लोग प्रवास भी करते हैं. सात्विकता के साथ, लोग गंगा में खड़े होकर उगते सूर्य अर्घ्य देकर उनकी उपासना करते हैं। इसी विषेशता के कारन भी इस उत्सव को बिहार का महापर्व कहा जाता है।

लेकिन अब पूरे भारत में छठ, लोक आस्था का महापर्व बन चूका है, यह पर्व बिहार से निकलकर अब पुरे भारत और देश विदेश में भी मनाया जाने वाला पर्व बन चूका है। कार्तिक महीने की षष्ठी तिथि की संध्या को व्रती भगवान सूर्य को अर्घ्य देकर उनकी उपासना करते हैं.। और अगले दिन सुबह उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देकर पूरा करते है।

👉 छठ को चार दिनों का ही पर्व क्यों कहा जाता है?

किसी भी पूजा को पूरा करने के लिए व्यक्ति को पवित्र होना लाजमी है । इसके लिए सात्विक रहन-सहन और सादा भोजन करना बेहद महत्वपूर्ण है। सूर्य के ताप से पूरा ब्रह्मांड जलता है, इसलिए इस पर्व की शुरुआत नहाए-खाए से होती है, यानी स्नान करने के बाद सादा और शुद्ध भोजन करना होता है । इस दिन से व्रती अपने मन और शरीर दोनों को सात्विक रूप से अपना लेते हैं। अगले दिन खरना कहा जाता है। पूरे दिन उपवास करने के बाद व्रती महिलाएं छठी मईया का गुणगान करते हुए शाम को गुड़ से बनी रोटी तथा चावल की पूजा करती हैं। इसके उपरांत प्रसाद के रूप में इसे बाद ग्रहण करती हैं। कही कही खीर को भी प्रसाद के रूप में भी बनाया जाता है। तीसरे दिन, षष्ठी तिथि, को वे निर्जला रहकर व्रती महिलाये दिन भर पूजा का प्रसाद बनाती हैं और शाम के समय पानी में खड़ी रहकर सूर्यदेव को जल और पकवान से अर्घ्य देती हैं. चौथे दिन उगते सूर्य को अर्घ्य देकर पर्व को पूर्ण किया जाता है.

👉 छठ में कोसी भराई की क्या परंपरा है?
छठ पर्व पर लोग भगवान सूर्य की उपासना कर अपनी मनोकामना की पूर्ति के लिए सूर्य देव से प्रार्थना करते है और मन्नत मांगते हैं। भगवान सूर्य देव को संध्या अर्घ्य देने के बाद अधिकांश महिलाएं रात को कोसी भराई करती हैं।

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