राम सेतु : राम सेतु की ये 10 रोचक बातें, जानकर हैरान हो जायेंगे

राम सेतु: वाल्मिकी रामायण और रामचरित मानस के अनुसार प्रभु श्री राम ने श्रीलंका जाकर समुद्र के ऊपर एक पुल बनवाया था। उस सेतु यानी पुल के आज भी रास्ते मिल गए हैं, लेकिन ‘सेतुसमुद्रम प्रोजेक्ट’ के तहत इस सेतु को बहुत पहले तक नुकसान पहुंचाया जा चुका है। आइए जानते हैं रामसेतु के 10 रोचक तथ्य।

1. भारत के दक्षिण में धनुर्कोटी और श्रीलंका के उत्तर पश्चिम में पम्बन के मध्य समुद्र में 48 किमी लंबी पट्टी के रूप में उभरे एक भू-भाग के उपग्रह से खींची गई संरचनाएं अमेरिकी अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान (नासा) में 1993 में आई थीं। जारी तो भारत में इसे लेकर राजनीतिक वाद-विवाद का जन्म हुआ। इस पुल जैसे भू-भाग को राम का पुल या रामसेतु कहा जाने लगा। राम सेतु का चित्र नासा ने 14 दिसंबर 1966 को जेमिनी-11 से अंतरिक्ष से प्राप्त किया था। इसके 22 साल बाद आई.एस.सी. 1 ए ने तमिलनाडु तट पर स्थित रामेश्वरम और जाफना द्वीप के समुद्र तट के अंदर भूमि-भाग का पता लगाया और उसकी तस्वीरें लीं। इससे अमेरिकी उपग्रह के चित्रों की पुष्टि हुई।

2. दिसंबर 1917 में साइंस चैनल पर एक अमेरिकी टीवी शो “एनशियेंट लैंड ब्रिज” में अमेरिकी पुरावशेषों ने वैज्ञानिक जांच के आधार पर कहा था कि भगवान राम के लंका सेतु तक बनने की हिंदू पौराणिक कथा सच हो सकती है। भारत और श्रीलंका के बीच 50 किमी लंबी एक रेखा से बनी चट्टानें सात हजार साल पुरानी हैं, जबकि जिस रेत पर ये चट्टानें हैं, वह चार हजार साल पुरानी हैं। नासा के सेटेलाइट और अन्य साक्ष्यों के साथ विशेषज्ञ का कहना है कि नासा के सेटेलाइट की उम्र में यह शास्त्र बताता है कि यह पुल इंसानों ने बनाया होगा।

3. इस पुल जैसे भू-भाग को राम का पुल या राम सेतु कहा जाने लगा। सबसे पहले आदिल की राजकुमारी ने इसे एडम पुल कहना शुरू किया था। फिर ईसाई या पश्चिमी लोग इसे एडम ब्रिज देखने लगे। उनका मानना है कि एडम इस पुल से गुजरे थे।

4. राम सेतु के बारे में कई शोधों के अनुसार कहा गया है कि 15वीं शताब्दी में यह पुल रामेश्वरम से मन्नार द्वीप तक पहुंचा था, लेकिन तूफानों ने यहां समुद्र को कुछ गहराई तक कर दिया था। 1480 ईस्वी सन् में यह समुद्री मील के कारण टूट गया और समुद्र का जल स्तर बढ़ने के कारण यह डूब गया।

5. वाल्मिकी जी ने रामायण में कहा है जब श्रीराम ने सीता को लंकापति रावण से छुड़ाने के लिए लंका द्वीप पर चढ़ाई की विश्वकर्मा के पुत्र नल और नील से एक सेतु बनवाया था  जिसे वानर सेना से सहायता की प्राप्ति के लिए बनाया गया था। इस सेतु में पानी में तैरने वाले पत्थरों का इस्तेमाल किया गया था जो कि किसी अन्य जगह से पाए गए थे। कहते हैं कि पत्थरों से पैदा हुए पत्थर पानी में नहीं डूबते हैं। व्युत्पत्ति: दस्तावेज़ों का उपयोग किया जाएगा।

6. . भगवान राम ने जहां धनुष मारा था उस स्थान को ‘धनुषकोटि’ कहते हैं। राम ने अपनी सेना के साथ लंका पर चढ़ाई करने के लिए उक्त स्थान से समुद्र में एक ब्रिज बनाया था इसका उल्लेख ‘वाल्मिकी रामायण’ में मिलता है। श्रीराम ने इसे सतु का नाम नल सेतु रखा था। वाल्मीक रामायण में वर्णन मिलता है कि पुल लगभग पांच दिनों में बन गया जिसकी लम्बाई सौ योजन और चौड़ाई दस योजन थी। रामायण में इस पुल को ‘नल सेतु’ की संज्ञा दी गई है। नल के निरीक्षण में वानरों ने बहुत प्रयत्न पूर्वक इस सेतु का निर्माण किया था।- (वाल्मीक रामायण-6/22/76)। गीताप्रेस गोरखपुर से छपी पुस्तक श्रीमद्वाल्मीकीय रामायण-कथा-सुख-सागर में वर्णन है कि राम ने सेतु के नामकरण के अवसर पर उसका नाम ‘नल सेतु’ रखा। इसका कारण था कि लंका तक पहुंचने के लिए निर्मित पुल का निर्माण विश्वकर्मा के पुत्र नल द्वारा बताई गई तकनीक से संपन्न हुआ था। महाभारत में भी राम के नल सेतु का जिक्र आया है।

7. वाल्मीक रामायण में कई प्रमाण हैं कि सेतु बनाने में उच्च तकनीक का प्रयोग किया गया था। कुछ वानर बड़े-बड़े पर्वतों को यंत्रों के द्वारा समुद्रतट पर ले आये ते। कुछ वानर सौ योजना माचिस सुत पकड़े गए थे, अर्थात पुल का निर्माण सुत से सीध में हो रहा था।- (वालमीक रामायण- 6/22/62)

8. कालिदास द्वारा रचित ‘रघुवंश’ के ‘रामायण’ सर्ग में राम के आकाश मार्ग से प्रकट होने का वर्णन है। इस सर्ग में राम द्वारा सीता को रामसेतु के बारे में बताया गया है। यह सेतु काल रूपांतरण में समुद्री तूफ़ान आदि के अवशेष टूट गए थे। अन्य ग्रंथों में कालीदास के रघुवंश में सेतु का वर्णन है। स्कंद पुराण (तृतीय, 1.2.1-114), विष्णु पुराण (चतुर्थ, 4.40-49), अग्नि पुराण (पंचम-एकादश) और ब्रह्म पुराण (138.1-40) में भी श्रीराम के सेतु का उल्लेख किया गया है।

9. वाल्मिकी के तीन दिन की खोजबीन के बाद श्रीराम ने रामाश्रम के आगे समुद्र में वह स्थान ढूंढ़ निकाला, वहां से आसानी से पहुंचा जा सकता था। उन्होंने नील और नील की मदद से उक्त स्थान से लंका तक के पुनर्निर्माण का निर्णय लिया। धनुरामकोडी भारत के तमिलनाडु द्वीप के पूर्वी तट पर रामाधार द्वीप के दक्षिणी तट पर एक गाँव स्थित है। धनुर्मोकड़ी पंजाब के दक्षिण-पूर्व में स्थित है। धनुषकोडी श्रीलंका में तलैमन्‍नार से करीब 18 मील पश्‍चिम में है।

10. इसका नाम धनुषकोडी इसलिए है कि यहां से श्रीलंका तक वानर सेना के माध्यम से नल और नील ने जो पुल (रामसेतु) बनाया था उसका आकार मार्ग धनुष के समान ही है। इन पूरे इलाकों को मन्नार समुद्री क्षेत्र के अंतर्गत माना जाता है। धनुषकोडी ही भारत और श्रीलंका के बीच एकमात्र स्‍थलीय सीमा है, जहां समुद्र नदी की गहराई जितना है जिसमें कहीं-कहीं भूमि नजर आती है।

श्रीवाल्मीकि ने रामायण की संरचना श्रीराम के राज्याभिषेक के बाद वर्ष 5075 ईपू के आसपास की होगी (1/4/1 -2)। श्रुति स्मृति की प्रथा के माध्यम से पीढ़ी-दर-पीढ़ी परिचलित रहने के बाद वर्ष 1000 ईपू के आसपास इसको लिखित रूप दिया गया होगा। इस निष्कर्ष के बहुत से प्रमाण मिलते हैं। 

रामायण की कहानी के संदर्भ निम्नलिखित रूप में उपलब्ध हैं-

कौटिल्य का अर्थशास्त्र (चौथी शताब्दी ईपू)

बौ‍द्ध साहित्य में दशरथ जातक (तीसरी शताब्दी ईपू)

कौशाम्बी में खुदाई में मिलीं टेराकोटा (पक्की मिट्‍टी) की मूर्तियां (दूसरी शताब्दी ईपू)

नागार्जुनकोंडा (आंध्रप्रदेश) में खुदाई में मिले स्टोन पैनल (तीसरी शताब्दी)

नचार खेड़ा (हरियाणा) में मिले टेराकोटा पैनल (चौथी शताब्दी)

श्रीलंका के प्रसिद्ध कवि कुमार दास की काव्य रचना ‘जानकी हरण’ (सातवीं शताब्दी)

संदर्भ ग्रंथ :

1. वाल्मीकि रामायण

2. वैदिक युग एवं रामायण काल की ऐतिहासिकता

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