दशहरा का इतिहास, महत्व और क्यों मनाया जाता है दशहरा?

दशहरा (विजय दशमी) :- यह पर्व सत्य की असत्य पर जीत का उत्सव है। दशहरा, जिसे विजय दशमी भी कहते हैं, अश्विन मास के शुक्ल पक्ष की दशमी को मनाया जाता है। विजयादशमी, या दशहरा, नवरात्रि के बाद मनाया जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान राम ने रावण को मारने से पहले नौ दिनों तक मां दुर्गा की पूजा की थी, फिर दसवें दिन रावण का वध किया था।

विजय दशमी का पर्व आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को मनाया जाता है। वाल्मीकि रामायण, श्री रामचरितमानस, कालिका उप पुराण और अन्य कई धार्मिक ग्रन्थों के अनुसार, यह पर्व मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम से बहुत जुड़ा हुआ है। विद्वानों का कहना है कि श्री रामजी ने इसी तिथि को अपनी विजय यात्रा शुरू की थी। इसलिए विजय यात्रा का यह पर्व शास्त्र सम्मत माना जाता है।  

दशहरे का इतिहास:

भारतीय काल गणना के अनुसार, यह आज से लगभग नौ लाख वर्ष पहले शुरू हुआ था। ज्योतिष सिद्धान्तों के अनुसार, इस समय ऐसे ग्रहों और नक्षत्रों का संयोग होता है कि किसी भी काम/यात्रा का श्रीगणेश करने पर विजेता को जीत ही मिलेगी। इसलिए, भगवान श्री राम की विजय यात्रा के स्मरणार्थ में आज भी मनाया जाने वाला विजयदशमी का पर्व का त्यौहार दशहरे के रूप में मनाया जाता है। इस तिथि में राजागण अपने राज्यों की सीमा पार करते रहते थे । श्रीराम ने रावण को दैवीय और मानवीय गुणों, जैसे सत्य, नैतिकता और सदाचार से हराया, और राक्षसी गुणों, जैसे अनैतिकता, असत्य, दंभ, अहंकार और दुराचार, पर विजय प्राप्त करी। यह पर्व न्याय की जीत और नारी जाति के अपमान करने वालों का संहार है।

स बारे में एक और पौराणिक कथा बताती है कि ब्रह्मा जी की उपासना करके असुर महिषासुर ने वरदान पर्यापत किया था की उससे पथ्वी पर कोई पराजित नहीं कर पाए। अर्थात उसका कोई भी वध नहीं कर पाए। महिषासुर ने अपने पाप के प्रकोप से सबको भयभीत कर रखा था। तब ब्रह्मा विष्णु महेश ने अपनी शक्ति से दुर्गा माता का सर्जन किया था। 9 दिनों तक महिषासुर और मां दुर्गा में खूब युद्ध हुआ, और 10वें दिन मां दुर्गा ने असुर महिषासुर का वध कर दिया ।

राम के मार्ग पर चलने का शुभ अवसर:

इस दिन की जीत केवल लंका या रावण पर राजनीतिक जीत नहीं है, बल्कि सनातन धर्म और मानवीय मूल्यों की जीत है। यह दुःख में धैर्य रखने और सुख में कभी न इतराने की शिक्षाओं से शुरू हुआ। भगवान श्रीराम के मार्ग पर चलने का निश्चय करने के लिए यह शुभ समय है। दशहरे का उत्सव निरपराध लोगों को निरंतर रुलाने वाले रावण के अहंकार रूपी दस सिरों और पौरूष की दुरुपयोगिनी बीस भुजाओं के विनाश का प्रतीक है। विजयादशमी की पूर्वपीठिका शुल्क पक्ष के पहले नवरात्र से शुरू होती है।

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