वाल्मिकी जयंती कब, कैसे, और क्यों मनाई जाती है? आइये जानते है वाल्मिकी जयंती के बारे विष्तार पूर्वक

वाल्मिकी जयंती 2023: प्रमुख हिंदू धर्मग्रंथ रामायण के रचयिता महर्षि वाल्मिकी की जयंती 28 अक्टूबर को मनाई जाएगी:- वाल्मिकी भगवान राम के प्रबल भक्त थे और उन्होंने देवी सीता को आश्रय देने और लव और कुश को रामायण सिखाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। वाल्मिकी जयंती उत्तरी भारत में उत्साह के साथ मनाई जाती है और वाल्मिकी ऋषि की पूजा करके, रामायण पढ़कर और जरूरतमंदों को भोजन देकर मनाई जाती है। इस दिन उस महान संत को श्रद्धांजलि दी जाती है। जिन्होंने अपनी शिक्षाओं के माध्यम से सामाजिक न्याय का प्रचार किया।

वाल्मिकी जयंती: वाल्मिकी जयंती महर्षि वाल्मिकी की जयंती के रूप में मनाई जाती है जो एक महान ऋषि, कवि और लेखक थे। वह प्रमुख हिंदू धर्मग्रंथ रामायण के रचयिता थे। यह दिन हिंदुओं के बीच बड़ा धार्मिक महत्व रखता है। वाल्मिकी जयंती अश्विन मास की पूर्णिमा तिथि को मनाई जाती है।

वाल्मिकी जयंती का महत्व
वाल्मिकी जयंती प्रसिद्ध ऋषि वाल्मिकी जी के उपलक्ष्य में मनाई जाती है, जिन्होंने हिंदू धर्म का पवित्र ग्रंथ रामायण  लिखा था।

ऋषि वाल्मिकी जी भगवान श्री राम के परम भक्त माने जाते थे। वाल्मिकी जी की कोई सटीक जन्मतिथि नहीं है। पौराणिक कथा के अनुसार, जब उनका जन्म हुआ तो उनके चेहरे पर पूर्णिमा के चंद्रमा जैसी चमक थी। ऋषि वाल्मिकी ही वह व्यक्ति थे, जिन्होंने देवी सीता को तब आश्रय दिया था, जब वह अयोध्या राज्य छोड़कर वन में चली गई थीं। वहीं पर देवी सीता ने उनके आश्रम में लव कुश को जन्म दिया। वाल्मिकी लव कुश के गुरु  बने और उन्हें रामायण की शिक्षा दी।

वाल्मिकी जयंती को प्रगट दिवस के रूप में भी मनाया जाता है और इसे भारत के उत्तरी क्षेत्र में बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है। वे इस दिन को बहुत खुशी के साथ मनाते हैं और इस प्रकार एक महान संत को श्रद्धांजलि देते है जिन्होंने हमेशा अपनी शिक्षाओं के माध्यम से लोगों को सामाजिक न्याय के लिए लड़ने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने ही अपनी रामायण में मर्यादा पुरूषोत्तम भगवान राम के बारे में बताया था।

महर्षि वाल्मिकी जी की कहानी:
कुछ पौराणिक कथाओं के अनुसार, कभी वाल्मिकी जी रतनाकर नाम के एक डाकू हुआ करते थे, जिनका जन्म गंगा के तट पर प्रचेतसन नामक ऋषि के यहाँ हुआ था। उनका जन्म नाम रतनाकर था। जब वाल्मिकी जी छोटे थे तब वह जंगल में खो गए थे और एक लुटेरे को मिले जिसने उन्ने आपने बेटे के रूप में पाला था अपने पालक पिता के रूप में वे भी लुटेरे बन गए थे एक दिन उनकी मुलाकात महर्षि नारद से हुई और उसने उन्हें भी लूटने की कोशिश की क्योंकि वह तब तक लोगों को लुटते रहे थे जब तक उसकी मुलाकात महर्षि नारद मुनि से नहीं हुई थी महर्षि नारद मुनि ही है जिन्होंने उन्ने एक अच्छा इंसान बनाया, नारद मुनि ने ही डाकू रयत्नाकर को ज्ञान का भंडार दिया और यहां तक कि उन्ने भगवान श्रीराम का एक भक्त अनुयायी भी बना दिया।

डाकू रयत्नाकर ने उस मार्ग का अनुसरण करना शुरू कर दिया जो नारद मुनि ने उन्हें दिखाया था और इस तरह भगवान श्रीराम का ध्यान करना शुरू कर दिया। कुछ वर्षों की तपस्या के बाद एक दिव्य आवाज ने उनकी तपस्या को सफल बनाया और उन्हें महर्षि वाल्मिकी नाम दिया। इसके अलावा उने एक कवि के नाम से भी जाना जाता था क्योंकि वे संस्कृत साहित्य के पहले कवि थे। हिंदू भक्त हमेशा उनके द्वारा लिखी गया हिंदू पवित्र ग्रंथ रामायण का पाठ करते हैं।

वाल्मिकी जयंती कैसे मनाई जाती है?
वाल्मिकी संप्रदाय के लोग वाल्मिकी ऋषि की पूजा करते हैं और उन्हें भगवान का रूप मानते हैं। ऋषि वाल्मिकी जी के स्तथापित मंदिरों को रोशनी और फूलों से सजाया गया। ऋषि वाल्मिकी जी का स्तथापित सबसे पुराने मंदिरों में से एक चेन्नई के तिरुवन्मियूर में स्थित है। यह मंदिर 1300 साल पुराना माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि वाल्मिकी ऋषि ने पवित्र ग्रंथ रामायण को समाप्त करने के बाद यहां विश्राम किया था और बाद में उनके शिष्यों ने इस मंदिर का निर्माण किया। भक्त वाल्मिकी जयंती के इस शुभ दिन पर गरीब और जरूरतमंद लोगों को खाना खिलाते हैं। रामायण के मंत्रों और श्लोकों का जाप करके प्रार्थना की जाती है। और दीये जलाकर ऋषि वाल्मिकी जी की पूजा करते की जाती है । मंदिर को पूरी तरह से फूलों और लाइटों से सजाया गया जाता है। वाल्मिकी जयंती के दिन लोग भजन-कीर्तन करते हैं और इस तरह इस दिन को बड़ी श्रद्धा से मनाते हैं।

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