करवा चौथ व्रत के बारे में पौराणिक इतिहास क्या है?

करवा चौथ व्रत : कार्तिक मास में कृष्‍ण पक्ष की चतुर्थी के दिन करवा चौथा का व्रत रखा जाता है। महिलाएं इस व्रत को अपने पति की लंबी उम्र के लिए रखती हैं। महिलाएं इस दिन चांद देखने के बाद ही निर्जला व्रत का समापन करती हैं।

जानिए विस्तार पूवर्क करवा चौथ व्रत की पौराणिक बातें।

1. कुवारी लड़कियां : मान्यता है कि कुछ जगह पर कुंआरी लड़कियां चार कारणों से करवा चौथ का व्रत करती हैं। पहला अपने मनचाहे पति को पाने के लिए, दूसरा अगर मंगनी हो गई है तो मंगेतर के लिए, तीसरे अगर प्रेम संबंध में है तो उसके लिए और चौथा अपने भविष्य के पति के लिए। यह कहा जाता है कि अविवाहित लड़कियों को करवा माता का आशीर्वाद मिलता है और उनकी सेहत में सुधार रहता है । कुंआरी लड़कियां इस दिन निर्जल की जगह निराहार व्रत रख सकती हैं और अपना व्रत चांद को नहीं देखकर तारों को देखकर खोल सकती हैं। उन्हें छलनी में किसी की सूरत भी नहीं देखनी होती है। इसलिए तारे देखने के लिए छलनी का इस्तेमाल नहीं होता है। और इसलिए चांद की जगह तारों को अर्घ्य दिया जाता है।

2. नारी शक्ति : करवा चौथ महिलाओं का त्योहार है। हिंदू धर्म में नारी, शक्ति का प्रतिनिधित्व करती है। कहते हैं कि नारी को यह वरदान है कि वह जिस भी काम या मनोकामना को पूरा करने के लिए तप या व्रत करेगी तो उनको अवश्य परिणाम मिलेगा। यदि वे अपने पति के लिए कुछ भी व्रत करती हैं, तो वह सफल जरूर होगा। पौराणिक कथाओं में माता पार्वती अपने पति शिव को पाने के लिए तप और व्रत करती है, जिसमें वह सफल होती है, दूसरी ओर, सावित्री ने अपने मर चुके पति को यमराज से अपने तप के बल पर बचा लिया था । यानी स्त्री की शक्ति इतनी महान है कि चाहे तो कुछ भी कर सकती है। महिलाएं इसलिए करवा चौथ के व्रत के रूप में अपने पति की लंबी उम्र के लिए तप करती हैं।

3. क्या है करवा : करवा मिट्टी से बना हुआ एक बर्तन है। काली मिट्टी में शक्कर की चासनी मिलाकर बनाई गई मिट्टी को करवा कहते हैं। कुछ लोग तांबे के बने करवे लाते हैं। और इस तरह दो करवे रखे जाते है। करवा में रक्षासूत्र बांधकर हल्दी और आटे के सम्मिश्रण को करवा में बांधकर एक स्वस्तिक बनाते हैं। एक करवे में जल और दूसरे में दूध डालकर ताम्बे या चांदी का सिक्का डालते है । जब बहू व्रत शुरू करती है, तो सास उसे करवा देती है उसी तरह से बहू भी अपनी सास को करवा देती है। कथा सुनते समय और पूजा करते समय दो करवे याद करके रखने चाहिए: एक वो करवा जिससे महिलाएं अर्घ्य देती हैं, जिसे उनकी सास ने दिया है, और दूसरा पानी भरकर उनकी सास को बायना देते समय दिया जाता है। सास उस करवे का जल किसी पौधे में पानी डालकर देती है और अपने लोटे से चंद्रमा को अर्घ्य देती हैं। महिलाएं मिट्टी का करवा इसलिए लेती हैं क्योंकि यह डिस्पोज किया जा सकता है। मिट्टी नहीं होने पर कुछ महिलाएं स्टील के लोटे का भी उपयोग करती हैं।

4. क्या होती है सरगी : इस रस्म की शुरुआत पंजाब प्रांत से हुई है| पंजाब प्रांत में यह रस्म अक्सर मनाई जाती है। जब कोई महिला करवा चौथ का व्रत रखती है, तो उसकी सास उसे सरगी बनाकर देती है। सरगी एक भोजन की थाली है जिसमें कुछ खाना है। जिसको खान के बाद दिनभर निर्जला उपवास रहा जाता है, फिर चांद की पूजा करने के बाद रात में खाया जाता है। सरगी खाने से व्रत की शुरुआत होती है, इसलिए सरगी की थाली में ऐसी चीजें होती हैं जिससे खाने से भूख और प्यास कम लगती हैं और दिन भर ऊर्जा बानी रहती हैं। अक्सर सरगी में सूखे मेवे और फल शामिल होते हैं। बहू अपने व्रत की शुरुआत सास की सरगी से करती है। अगर सास साथ में नहीं है। तो वह बहु को सरगी के पैसे भिजवा सकती हैं, ताकि वह अपने लिए सब कुछ खरीद सके। इस सरगी में कपड़े, सुहाग की सामग्री, फेनिया, ड्राईफ्रूट, नारियल और बहुत कुछ होता है। बिहार और उत्तर प्रदेश में इस त्योहार को मनाने का तरीका अलग है।

5. करवा नाम की स्त्री : यह भी कहा जाता है कि करवा नाम की एक पतिव्रता स्त्री के नाम पर भी करवा चौथ का नाम पड़ा है। कहा जाता है कि करवा नाम की एक पतिव्रता स्त्री नदी के किनारे एक गांव में अपने पति के साथ रहती थी। एक दिन करवा के पति को नदी में स्नान करते समय एक मगरम्छ ने उसका पैर पकड़ लिया। वह व्यक्ति करवा-करवा कहकर अपनी पत्नी को बुला रहा था। उसकी पत्नी करवा भागी हुई आई और मगरम्छ को कच्चे धागे से बांध दी। मगरम्छ को बांधकर बांधकर वह यमराज के पास पहुंची और कहने लगी, यमराज से हे भगवन मेरे पति का पैर मगरमच्छ ने पकड़ लिया है।” उस मगर को पैर पकड़ने का अपराध दीजिये उस मगर को आप नरक में डाल दीजिये । यमराज ने कहा, “लेकिन अभी उसकी आयु शेष है, इसलिए मैं उसे नहीं मार सकता।” इस पर करवा ने कहा, “अगर तुम ऐसा नहीं करोगे तो मैं तुम्हें श्राप देकर नष्ट कर दूंगी।”श्राप का नाम सुनकर यमराज डर गए और मगरमच्छ को यमपुरी भेज दिया और करवा के पति को लंबी उम्र का आशीर्वाद दिया। तब से उस महिला को करवा माता कहना शुरू किया गया।

6. चांद से जुड़ा पर्व : कृष्ण पक्ष की चतुर्थी का चांद को देखकर ही कारवा चौथ का व्रत खोला जाता है। चंद्रमा के उदय का समय हर शहर में अलग है। महिलाएं इस दिन चंद्रमा को देखे बिना न तो भोजन करती हैं और न पानी पीती हैं। चंद्रमा का उदय होने पर महिलाएं पहले छलनी से चाँद को देखती हैं, फिर अपने पति को. फिर पति अपनी पत्नियों को लोटे से जल पिलाकर उनका व्रत पूरा कराता है। यह व्रत चांद देखे बिना पूरा नहीं होता।

7. प्राचीन काल की परंपरा : ऊपर बताई गई करवा नामक महिला की कथा के अलावा,इसे जुडी एक अन्य कथा भी है  एक बार देवताओं और दानवों के बीच बहुत ही भयंकर युद्ध हुआ जिश्मे देवताओं की पराजय होने लगी। पराजय से भयभीत देवता ने ब्रह्मदेव से रक्षा की मांग की। ब्रह्मदेव ने कहा कि इस संकट से बचने के लिए सभी देवताओं की पत्नियों को अपने-अपने पति के लिए व्रत रखना चाहिए और सच्चे दिल से उनकी जीत की कामना करनी चाहिए। ऐसा करने पर इस युद्ध में देवताओं की जीत सुनिश्चित होगी। ब्रह्मदेव की बात सुनकर सभी देवताओं की पत्नियों ने कार्तिक की चतुर्थी के दिन व्रत रखा और अपने पति की विजय की प्रार्थना की। उनकी यह प्रार्थना स्वीकार हुई और देवताओं की युद्ध में जीत हासिल हुई । इस खुशखबरी को सुनकर सभी देवपत्नियों ने अपना व्रत खोला और खाना खाया। उस समय चांद भी आकाश में दिखाई देता नज़र आया। माना जाता है कि करवा चौथ के व्रत की परंपरा इसी दिन से शुरू हुई।

8. कथा (कहानी) सुनना बहुत महत्वपूर्ण है : इस व्रत में माता पार्वती, कार्तिकेय, गणेश और शिव शंकर की पूजा का विधान है। कथा सुनना व्रत वाले दिन बहुत महत्वपूर्ण माना गया है। विवाहित महिलाओं का मानना है कि करवाचौथ की कहानी सुनने से उनका सुहाग बरकरार रहता है, उनके घर में सुख, शान्ति और समृद्धि आती है और उनकी सन्तान सुखी होती है। महाभारत भी करवा चौथ के महत्व को बताता है। द्रौपदी को करवा चौथ की कहानी सुनाते हुए भगवान श्री कृष्ण कथा सुनाते हुए कहा था इस व्रत को पूरी श्रद्धा से और विधि-पूर्वक करने से समस्त दुख दूर हो जाते हैं। द्रौपदी ने भी श्री कृष्ण की आज्ञा मानकर करवा-चौथ का व्रत रखा था। इस व्रत से ही पांचों पांडवों ने महाभारत की लड़ाई में जीत हासिल की थी।

9. पौराणिक कथाओं में माँ पार्वती : पौराणिक कथाओं में माता पार्वती ने अपने पति शिव को पाने के लिए घोर तप और व्रत किया था , जिसमें वह सफल भी हुई थी, दूसरी ओर, सावित्री अपने मर चुके पति को यमराज से अपने तप से बचाती है। यानी स्त्री की शक्ति इतनी है कि चाहे तो वो कुछ भी कर सकती है। इसलिए माना जाता है की महिलाएं करवा चौथ के व्रत के रूप में अपने पति की लंबी उम्र के लिए घोर तप करती हैं।

10. करवा चौथ का व्रत मुश्किल क्यों है : तप करने का मतलब है किसी चीज को त्यागना और किसी एक दिशा में आगे बढ़ना।। इस दिन महिलाएं निर्जल व्रत करती हैं। और हमेशा चौथ का चांद भी देर से निकलता है। कभी-कभी देर तक चांद नहीं दिखता। मौसम ख़राब होने की वजह से ऐसा होता है कि बार-बार बादलो से आसमान घिर जाता है और चांद को निकलने में कठिनाई होती है। इसलिए महिलाएं देर रात या अगले दिन तक अपना व्रत नहीं तोड़ती हैं। ये एक तरह से महिलाओं की परीक्षा होती है कि वे अपने पति के लिए कितना त्याग कर सकती हैं।

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